FIR को वापस कैसे ले? क्या FIR वापस लिया जा सकता है? FIR Ko Cancel Kaise Kare

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क्या कोई व्यक्ति एफआईआर (FIR) वापस ले सकता है?

सबसे पहले आपको यहाँ जानकारी होना जरुरी है कि एक बार FIR होने के बाद उसे Cancel (वापस) नहीं लिया जा सकता है।

FIR Ko Wapas Kaise Laye इसके बारे में कानून में कोई प्रावधान नहीं किया गया है। लेकिन कुछ प्रावधान ऐसे है जिनके द्वारा अगर पीड़ित पक्षकार ( शिकायतकर्ता ) चाहये तो FIR के होने वाले प्रभाव को न्यायालय कि सहायता से कम करवा सकता है जिनके बारे में अब हम आपको बताते है।

शपत पात्र (Affidavit) के द्वारा

शिकायतकर्ता जांच अधिकारी (I.O) को एक शपत पात्र दे सकता है जिसमे शिकायतकर्ता यह बात लिखकर दे सकता है कि FIR किसी विधि की भूल या तथ्य की भूल के कारण गलती से दर्ज हो गयी है और अब मै यानिकि शिकायतकर्ता इस मामले मे आगे कोई करवाई नहीं चाहता है यह सभी बात आप शपत पात्र मे लिखकर दे सकते है। अगर जांच अधिकारी आपका शपत पात्र लेने से माना करता है तो आप एसपी को भी शपत पात्र दे सकते है।

शपत पात्र देने के बाद जांच अधिकारी (I.O) न्यायालय में False FR Report पेश करेगा जिसको Closer Report कहा जाता है।

अपराधों का शमन, CrPC, Section 320 ( CrPC Section 320. Compounding of offences )

सबसे पहले आपको अपराध के बारे में यहाँ जानकारी होना जरुरी है कि कानून ने अपराध को दो भागो में विभाजित किया है।

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पहले प्रकार के अपराध जिनमे शिकायतकर्ता न्यायालय में एप्लीकेशन के द्वारा यह कहा सकता है कि अब वह इस FIR में कोई अन्य कारवाई नहीं चाहता है क्योकि दोनों पक्षकारो के मध्य समझौता हो गया है।

इसके बाद न्यायालय यह देखती है कि अपराध समझौता योग्य है या नहीं। अगर अपराध समझौता योग्य है तो न्यायालय एप्लीकेशन को स्वीकार करके दोनों पक्षकार का समझौता करवाकर केस को ख़तम कर सकती है। इन्हे समझौता योग्य अपराध कहा जाता है।

धारा 320 दंड प्रक्रिया सहित में समझौता होने योग्य अपराधों को दिया गया है।

दूसरे प्रकार के अपराध जिनमे समझौता करने से पहले न्यायालय कि अनुमति जरुरी होती है। लेकिन बहुत से अपराध गंभीर प्रकृति के होते है जिनमे समझौता नहीं किया जा सकता है क्योकि इस प्रकार के ज्यादातर अपराध समाजः के विरुद्ध होते है इस्सलिये इन्हे गैर समझौता योग्य अपराध कि श्रेणी में रखा जाता है।

लेकिन अगर आपका केस धारा 320 में नहीं आता है तो आप उच्च न्यायालय में गुहार लगा सकते है क्योकि उच्च न्यायालय को बहुत से मामलो में यह अधिकार दिया गया है कि वह मामले को ख़तम कर सकता है। यह बात उच्चतम न्यायालय ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब राज्य 2012 में कही थी।

CrPC की धारा 321 के द्वारा

धारा 321 Crpc में सरकारी वकील को यह अधिकार दिया गया है कि वह किसी संबंधित मामले में अभियोग पक्ष से मामले कि वापसी के लिए आवेदन कर सकता है लेकिन इसमें न्यायालय कि अनुमति जरुरी है।

मामले का वापसी का मतलब यह नहीं होता है कि FIR ख़तम हो गयी है। यह आवेदन पुलिस के द्वारा आरोप पात्र दाखिल होने के बाद ही किया जाता है और बहुत से मामलो में राज्य सरकार कि अनुमति कि भी जरुरत पड़ती है।

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धारा 482 दंड प्रक्रिया सहित के द्वारा

धारा 482 Crpc में उच्च न्यायालय को FIR को ख़तम करने कि शक्ति दी गयी है। इस धारा का प्रयोग झूठी FIR होने के मामले में किया जाता है।

लेकिन इसमें ये बात भी जरुरी है कि FIR किसी खतरनाक अपराध से संबंधित नहीं होनी चाहिए जैसे हत्या , बलात्कार , या फिर पोस्को से संबंधित नहीं होनी चाहिए क्योकि इस प्रकार के अपराध राज्य के विरुद्ध होते है। यह बात भजनलाल बनाव हरयाणा राज्य AIR 1992 में कही थी।

अंत में शिकायतकर्ता जब न्यायालय में बयान देता है तो उस समय वह न्यायालय के समक्ष केस के सभी तथ्यों को सही अर्थो में बताकर आरोपी को सजा से बचा सकता है।

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