भारतीय कानून में चेक बाउंस केस को फाइल करने का एक प्राररूप तय किया गया है जिसका इस्तेमाल करके ही चेक बाउंस केस को फाइल किया जा सकता है अगर इसमें किसी भी प्रकार की लापरवाई की जाती है तो आपका केस रद होने कि सम्भावना बन जाती है।
आज हम आपको इसी के बारे में जानकारी साझा करेंगे जिसका इस्तेमाल करके आप अपना चेक बाउंस केस (Cheque Bounce Case Kaise Kare) धारा 138 NI एक्ट के तहत न्यायालय में दाखिल कर सकते है।
चेक बाउंस का मतलब
सबसे पहले आपको यह जानना जरुरी है कि चेक बाउंस का मतलब क्या होता है। चेक बाउंस का आसान भाषा में मतलब समझे तो जब एक व्यक्ति द्वारा दूसरे व्यक्ति को उसकी सेवाओं के बदले या उसकी वस्तु कि कीमत को लौटने के लिए एक पक्षकार द्वारा दूसरे पक्षकार को चेक दिया जाता है जिसका इस्तेमाल करके चेक प्राप्त करने वाला व्यक्ति बैंक में जाकर अपनी वस्तु और सेवा का मूल्य प्राप्त करने के लिए बैंक में उस चेक को लगाता है ताकि चेक में लिखी हुई राशि को प्राप्त कर सके।
लेकिन किसी कारण से चेक बाउंस ( मतलब आपको आपके चेक में लिखी राशि प्राप्त नहीं हो पायी ) हो जाता है तो इसी को चेक बाउंस (Cheque Bounce) कहा जाता है।
इसमें आपको इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि चेक पर लिखी हुई तारीख से अगले 3 महीनो के लिए ही उस चेक को बैंक में लगाकर उसका मूल्य प्राप्त किया जा सकता है उसके बाद नहीं।
चलिए अब जानते है कि चेक बाउंस होने के क्या क्या कारण हो सकते है।
चेक बाउंस होने के कारण
चेक बाउंस होने के बहुत से कारण हो सकते है जैसे –
1. A/C Close – चेक देने वाले व्यक्ति ने अपना बैंक खाता बंद करवा दिया हो।
2. Insufficient Balance – चेक देने वाले व्यक्ति के बैंक खाते में मौजूदा राशि न हो। इसका मतलब कि चेक में लिखी राशि चेक देने वाले व्यक्ति के खाते में न हो या उससे कम हो उस स्थिति में भी चेक बाउंस हो सकता है।
3. Stop Cheque – इसके अलावा चेक देने वाले व्यक्ति ने उस चेक को रुकवा दिया हो।
4. Signature Mismatch – या यह भी हो सकता है कि चेक देने वाले व्यक्ति के हस्ताक्षर जो बैंक अकाउंट में है उनसे चेक में हुए हस्ताक्षर का न मिलना |
इसके बाद चेक बाउंस पीड़ित व्यक्ति को न्यायालय में केस फाइल करने का अधिकार मिल जाता है लेकिन उससे पहले चेक देने वाले व्यक्ति को चेक बाउंस पीड़ित व्यक्ति द्वारा एक लीगल नोटिस भेजना जरुरी है।
चेक बाउंस केस की प्रक्रति
चेक बाउंस केस एक आपराधिक प्रकृति का मामला है और इसमें आपराधिक न्यायालय मजिस्ट्रेट द्वारा करवाई की जाती है।
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लीगल नोटिस प्रक्रिया
चेक बाउंस केस की शुरुआत चेक जारी कर्ता व्यक्ति को एक कानूनी नोटिस देकर ही की जा सकती है। यह चेक बाउंस केस का पहला चरण है।
आपको यह बात याद रखा जरुरी है कि जब आपका चेक बैंक द्वारा बाउंस हो जाता है तो उस दिन से अगले 30 दिनों कि अवधि के अंदर आपको चेक जारीकर्ता को एक लीगल नोटिस उसके निवास स्थान यानिकि जहां वह व्यक्ति रहता है या फिर वह काम करता है वह दोनों जगह आप को उस लीगल नोटिस को भेजना है उसके बाद ही आप न्यायालय में केस फाइल कर सकते है।
लीगल नोटिस भेजने के लिए आप किसी एक्सपर्ट वकील कि सहायता ले सकते है और अगर आप चाहे तो इसमें हमारी लीगल एक्सपर्ट टीम कि भी सहायता ले सकते है | नोटिस में आपको चेक बाउंस होने का कारण भी सामने वाली पार्टी को बताना है जिस कारण आपको पैसा नहीं मिला। साथ में आपको नोटिस में सामने वाली पार्टी को नोटिस प्राप्त होने कि तारीख से अगले 15 दिनों के अंदर पैसे वापस लौटने का निवेदन करना है।
अगर 15 दिनों के अंदर आपको आपके पैसे वापस नहीं किये जाते है तो उस स्थिति में अगले 30 दिनों के अंदर आप न्यायालय में धारा 138 NI Act के तहत केस फाइल कर सकते है।
आइये इसे एक उदहरण कि सहायता से समझते है।
मान लीजिये आपको किसी व्यक्ति से एक चेक प्राप्त हुआ है जिसमे चेक के अंदर जो तारीख लिखी हुई है वह है 1 जनवरी 2024 जैसा कि हमने आपको ऊपर बताया है कि चेक पर लिखी हुई तारीख से चेक अगले 3 महीनो के लिए ही vaild रहता है उसका इस्तेमाल आप अगले 3 महीनो में कभी भी बैंक में लगाकर पैसा प्राप्त किया जा सकता है उसके बाद नहीं।
मान लीजिये अपने वह चेक 3 दिन बाद 4 जनवरी 2024 को बैंक में जमा करवा दिया ताकि आपको पैसा मिल सके। लेकिन आपको तारीख 7 जनवरी 2024 को बैंक द्वारा सूचित किया जाता है कि आपके द्वारा जमा किया गया चेक बाउंस हो गया है।
अब आपको 7 जनवरी 2024 से अगले 30 दिनों के अंदर तारीख 6 फरवरी 2024 तक आपको सामने वाली पार्टी ( चेक जारीकर्ता ) को लीगल नोटिस भेजना है।
मान लीजिये अपने 15 जनवरी 2024 को लीगल नोटिस भेज दिया और चेक जारीकर्ता को 20 जनवरी 2024 को नोटिस मिल जाता है तो अब 15 दिनों कि समय सीमा 20 जनवरी 2024 से गिनी जायगी जिस दिन चेक जारीकर्ता को नोटिस मिल जाता है। 4 फरवरी 2024 तक चेक जारीकर्ता को आपके पैसे वापस लौटने होंगे अगर वह आपके पैसे 15 दिनों के अंदर वापस नहीं करता है तो 4 फरवरी 2024 से लेकर अगले 30 दिनों के अंदर ( 5 मार्च 2024 ) आप न्यायालय में केस फाइल कर सकते है।
आपको इस बात का ध्यान रखना है कि आपको चेक बाउंस होने कि तारीख से अगले 30 दिनों के अंदर नोटिस सामने वाले पक्षकार को भेजना है अगर आप 30 दिनों के अंदर नोटिस नहीं भेजते हो तो आप 138 NI ACT में केस फ़ाइल नहीं कर सकते फिर आपको सिविल केस (Civil Case) करके ही आप अपने पैसो को वापस पा सकते है। इस समय अवधि को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।
ओर रही बात केस फ़ाइल करने कि तो उस समय अवधि 30 दिनों को अगर कोई युक्तियुक्त कारण है तो न्यायालय उस समय अवधि को बड़ा सकता है लेकिन आपको न्यायालय में इस बात को साबित करना होगा कि अपने समय अवधि के अंदर केस किस कारण से फ़ाइल नहीं किया।
लेकिन आपको जल्द से जल्द बिना देरी किये केस फ़ाइल करना चाहिए।
लीगल नोटिस कैसे दे
आपको इस बात का विशेष रूप से ध्यान रखना है कि चेक बाउंस होने कि सूचना जब आप सामने वाले पक्षकार को लीगल नोटिस कि सहायता से भेजते है तो आपको स्पीड पोस्ट या रजिस्ट्री के माध्यम से ही भेजनी है ओर आपको उसकी एक रशीद भी पोस्ट ऑफिस से जरूर लेनी है जिसकी जरुरत आपको केस फ़ाइल करते टाइम ओर आपके नोटिस को ट्रैक करने में जरुरत पड़ेगी इस्सलिये आपको इसे संभालकर रखना है।
चेक बाउंस केस से बचने के जबरदस्त उपाय
केस कहा फ़ाइल होगा
जिस बैंक में चेक बाउंस हुआ है उसी के क्षेत्राधिकार में केस फ़ाइल किया जा सकता है।
कोर्ट fee
कोर्ट fee का भुगतान स्टाम्प पेपर के द्वारा किया जाता है जो तीन प्रकार का है।
चेक कि राशि अगर 1 लाख तक है तो 5 % और अगर राशि 1 लाख से 5 तक है तो 4 % और अगर अन्य 5 लाख से अधिक के लिए 3 % Court Fee का भुगतान करना पड़ता है।
कोर्ट में कौन कौन से दस्तावेज लगेंगे
सबसे पहले आपको कोर्ट Fee की Recipt चाहिए जो अपने कोर्ट Fee Pay करने के बाद प्राप्त हुई होगी। उसके बाद आपको चाहिए परिवाद पत्र।
परिवाद पत्र
परिवाद पत्र में न्यायालय का नाम और भुगतान से संबंधित कुल लेनदेन की पूरी जानकारी लिखी जाती है। इसके साथ ही साथ इसमें परिवादी का शपथ पत्र भी होता है जो शपथ आयुक्त द्वारा रजिस्टर होता है।
चेक की मूल प्रति इसका मतलब Orignal चेक जो आपको मिला था।
अनादर रशीद जो आपको बैंक द्वारा चेक बाउंस होने के बाद मिलती है जिसको चेक मेमो भी कहा जाता है। जिसमे आपको चेक बाउंस होने का कारण भी लिखा होता है।
इसके बाद महत्वपूर्ण दस्तावेज में लीगल नोटिस भेजने के समय जो आपको पोस्ट ऑफिस से एक रशीद मिली थी उसको सर्विस स्लिप कहा जाता है जिसमे लीगल नोटिस भेजने का समय लिखा होता है और इसके साथ ही साथ उस पर एक ट्रैकिंग नंबर भी लिखा होता है जिसको इंडियन पोस्ट की साइट से जाकर ट्रैक किया जा सकता है जिससे यह पता किया जा सके कि नोटिस सामने वाले पक्षकार को मिल गया था उसकी रिपोर्ट की एक कॉपी भी साथ में लगा देनी चाहिए।
गवाहों की सूची
अगर मामले से सम्बन्धित आपके पास कोई गवा है तो उनकी जानकारी जरूर दे।
न्यायालय में प्रक्रिया
प्रकरण रजिस्टर होना
अब न्यायालयो में केस फइलल करने से पहले उसको e – fillin करवाना जरुरी है उसके बाद ही केस को सम्बन्धित न्यायालय में रजिस्टर कर दिया जाता है और आपको एक केस नंबर मिल जाता है और आपको बता दिया जाता है की आपका केस किस दिन को न्यायालय में सुना जायगा और किस कोर्ट में। उस दिन आपको न्यायालय में हाजिर होना जरुरी है ताकि आप न्यायालय को केस से सम्बंधित जानकारी बता सके और न्यायालय उस केस में आगे करवाई कर सके।
सम्मन
NI Act की धारा 144 के तहत केस लिस्ट होने के बाद न्यायालय द्वारा केस से सम्बन्धित पक्षकारो को सम्मन द्वारा न्यायालय में हाजिर कोने का आदेश दिया जाता है और इसके साथ ही साथ विपक्षी पक्षकार अपना लिखित अभिकथन ( जवाब ) न्यायालय में प्रस्तुत करेगा।
पुन : सम्मन
यदि विपक्षी पक्षकार (आरोपी व्यक्ति ) न्यायालय में नहीं आता है तो न्यायालय द्वारा उसको एक बार फिर पुन सम्मन भेजा जाता है ताकि वह न्यायालय में आकर अपना जवाब दाखिल कर सके |
वारंट
आपको ये बात पता होने चाहिए कि चेक बाउंस केस एक आपराधिक मामला होता है जिसे मजिस्ट्रेट के न्यायालय द्वारा सुना जाता है। अगर न्यायालय के द्वारा किये गए सम्मन द्वारा आरोपी व्यक्ति न्यायालय में नहीं आता है तो न्यायालय अपने विवेक के अनुसार उस आरोपी व्यक्ति के खिलाफ जमानती या फिर गैर जमानती वारंट किसी भी भांति का वारंट आरोपी के नाम से सम्बंधित थाने को जारी कर सकती है।
अगर पुलिस आरोपी व्यक्ति को पकड़ कर न्यायालय में पेश करती है तो आरोपी व्यक्ति को सबसे पहले अपनी जमानत करवानी होती है और न्यायालय उसे जमानत तभी देगा अगर आरोपी व्यक्ति न्यायालय को सही कारण बता दे कि वह न्यायालय में किस कारण से हाजिर नहीं हो सका।
प्रति परीक्षा
प्रति परीक्षा (Cross Examination) को जिरह भी कहा जाता है यह आरोपी व्यक्ति जब न्यायालय के समक्ष उपस्तित होता है तब न्यायालय द्वारा प्रति परीक्षा की अनुमति दी जाती है। प्रति परीक्षा में वकील साहब घटना से संबंधित प्रश्न पूछते है।
न्यायालय उपधारणा करेगा
धारा 138 NI एक्ट के मामले में न्यायालय ये उपधारणा मतलब यह मानता है कि चेक देने वाला व्यक्ति दोषी होगा और न्यायालय इस बात कि भी उपधारणा करेगा कि चेक देने वाले व्यक्ति ने चेक प्राप्त करने वाले व्यक्ति को चेक अपने आप ही दिया होगा। अब इस बात को सिद्ध करने का भार आरोप व्यक्ति पर होगा कि उसके द्वारा कोई भी चेक नहीं दिया गया है।
समरी ट्रायल
NI एक्ट कि धारा 143 के तहत चेक बाउंस का केस एक समरी ट्रायल होता है , जिसे न्यायालय द्वारा जल्दी से जल्दी निपटने कि कोशिश कि जाती है।
समझौता योग्य
NI एक्ट एक समझौता योग्य अपराध होता है। इसमें अगर मुक़दमे से जुड़े हुए दोनों पक्षकार आपस में समझौता करने के लिए तैयार हो जाते है तो न्यायालय उनको समझौता करने कि अनुमति प्रधान कर सकता है और इस प्रकार केस को ख़तम किया जा सकता है। समझौता न्यायालय के सामने भी किया जा सकता है या फिर न्यायालय परिषर में बने मध्यस्थता केंद्र में भी समझौता किया जा सकता है।
NI Act में संशोधन
2018 में NI एक्ट कि धारा 143 (A) में संशोधन किया गया है कि परिवादी पक्षकार एक आवेदन के माध्यम से आरोपी व्यक्ति से अपने सम्पूर्ण धनराशि जो चेक में लिखी हुई है उसका 20% हिस्सा न्यायालय द्वारा दिलवाये जाने के लिए निवेदन कर सकता हैं और न्यायालय अपने आदेश के माध्यम से आरोपी से ऐसी धनराशि परिवादी से दिलवा सकता है।
अंतिम बहस
यदि कैस में दोनों पक्षकारो में आपस में समझौता नहीं होता है और पक्षकार मुक़दमे को आगे चलाना चाहते है तो उस स्थिति में न्यायालय द्वारा आरोप तय करके मामले को अंतिम बहस के लिए रख्ग लिया जाता है तथा दोनों पक्षकारो में आपस में अंतिम बहस होती है।
निर्णय
सभी प्रक्रिया पूरी होने के बाद मामला निर्णय पर आता है तथा कोर्ट इस मामले में दोषी पाए जाने पर आरोपी व्यक्ति को 2 वर्ष तक का श्रम कारावास दे सकती है या फिर चेक में लिखी हुई राशि का दो गुना जुर्माना लगा सकती है। लेकिन इसमें ये बात जानना भी जरुरी है कि धारा 138 एक जमानतीय अपराध है और आरोपी व्यक्ति न्यायालय से जमानत का अनुरोध कर सकता है।
इसमें आप हमारी सहायता चाहते हैं तो आप हमसे Whatsapp के माध्यतम से हमसे सम्पर्क कर सकते है।