Narco Test Full Form in Hindi | नार्को टेस्ट का फुल फॉर्म
नार्को टेस्ट (Narco test) जिसे डिसेप्शन डिटेक्शन टेस्ट(Deception Detection Test) भी कहते है जो एक प्रकार का मनोवैज्ञानिक परीक्षण है जिसका उपयोग आरोपी व्यक्ति से अपराध से संबंधित जानकारी निकालने के लिए किया जाता है। नार्को टेस्ट का उपयोग अपराध से संबंधित सच्चाई और सबूतों को खोजने में काफी मददगार माना जाता है|
इस पोस्ट में आपको नार्को टेस्ट से संबंधित सम्पूर्ण जानकारी दी जायगी।
नार्को टेस्ट करते समय कई सावधानियों का ध्यान रखा जाता है अगर नार्को टेस्ट करते समय किसी भी प्रकार की लापरवाही होती है तो इसका असर सीधे तोर पर जिस व्यक्ति पर नार्को टेस्ट किया जा रहा है उस पर पड़ता है उस व्यक्ति की जान भी जा सकती है या वो कोमा में भी जा सकता है। नार्को टेस्ट के अंदर दो प्रकार के टेस्ट शामिल है जो है पॉलीग्राफ और ब्रेन-मैपिंग टेस्ट।
नार्को टेस्ट से पहले फिटनेस टेस्ट आवश्यक
आरोपी का Narco test करने से पहले स्वास्थ्य परिक्षण किया जाता है। जिसमे उसके आने प्रकार के टेस्ट किये जाते है ताकि नार्को टेस्ट करते समय किसी भी प्रकार के जोखिम से बचा जा सके। जब आरोपी इन सभी मापदंडो पर खरा उतरता है तभी उसके नार्को टेस्ट के लिए भेजा जाता है। स्वास्थ्य परिक्षण करने का मुख्य कारण आरोपी व्यक्ति के शरीर की ऊर्जा का पता लगाना होता है ताकि नार्को टेस्ट करते समय नार्को दवाइयों की जाता मात्रा देने से बचा जा सके।
नार्को टेस्ट कराने से पहले व्यक्ति की सहमति आवश्यक
नार्को टेस्ट जानलेवा भी साबित हो सकती है थोड़ी सी चूक से आरोपी व्यक्ति की जान तक भी जा सकती है इसी करने से भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नार्को टेस्ट के लिए जरुरी नियम कानून बनाये हुए है जिसके तहत टेस्ट से पहले व्यक्ति की सहमति आवश्यक मानी जाती है उसकी सहमति के बाद ही टेस्ट की प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है। नार्को टेस्ट को लेकर सर्वोच्च न्यायालय समय समय पर अपने निर्णय में कहा है की नार्को एनालिसिस, ब्रेन मैपिंग और पालीग्राफ टेस्ट बिना अभियुक्त व्यक्ति की सहमति के नहीं किया जा सकता है।
नार्को टेस्ट में कौन सी दवा का उपयोग किया जाता है?
नार्को टेस्ट को करने के दौरान व्यक्ति के शरीर में सोडियम पेंटोथल या सोडियम एमिटाल की लगभग 3 ग्राम मात्रा इसके साथ ही साथ 3000 मिली डिस्टिल्ड वाटर का मिश्रण उस व्यक्ति की आयु, लिंग, स्वास्थ्य और शारीरिक अवस्था के अनुसार थोड़ी थोड़ी मात्रा में व्यक्ति के शरीर में इंजेक्ट किया जाता है अगर ज्यादा इसका उपयोग किया गया तो व्यक्ति कोमा में भी जा सकता है। नार्को टेस्ट को नार्कोएनालिसिस टेस्ट के नाम से भी जाना जाता है।
नार्को टेस्ट कैसे किया जाता है? Narco Test Kaise Kiya Jata Hai
नार्को टेस्ट को करने के दौरान व्यक्ति के शरीर में सोडियम पेंटोथल या सोडियम एमिटाल इंजेक्ट किया जाता है इसके कारण व्यक्ति सम्मोहक की अवस्था मतलब की व्यक्ति ऐसी अवस्था में पहुंच जाता है जहा पर अभियुक्त न तो पूरी तरह से बेहोश भी नहीं होता है और ना ही पूरी तरह से होश में रहता है इसी को सम्मोहक की अवस्था कहा जाता है अर्थात व्यक्ति की तार्किक सामर्थ्य कमजोर हो जाती है जिसमें व्यक्ति बहुत ज्यादा और तेजी से नहीं बोल पाता है इस अवस्था में यह माना जाता है की अभियुक्त झूठ बोलने में असमर्थ हो जाता है।
इन दवाइयों के असर से आरोपी अपनी सोचने समझने की समता को कुछ समय के लिए खो देता है इसी अवस्था में आरोपी से केस से जुड़े हुए प्रश्न पूछे जाते है इस टेस्ट के असर से व्यक्ति के प्रश्नो के उतर को घुमा फिराकर सोचकर उतर देने की समता ख़तम हो जाती है इस कारण इस बात की संभावना अधिक हो जाती है की व्यक्ति इस अवस्था में सच ही बोलेग।
किन किन लोगो की मोजुदगी में होता है नार्को टेस्ट?
नार्को टेस्ट करने में विशेषज्ञों के एक समहू का गढन किया जाता है। नार्को टेस्ट करने वाली टीम में अनेक प्रकार के लोग शामिल होते है जिनमे साइकोलॉजिस्ट, एनेस्थिसियोलॉजिस्ट, टेक्नीशियन और मेडिकल स्टाफ आदि शामिल है।
आरोपी के खुलासों की होगी वीडियो रिकॉडिंग
नार्को टेस्ट करते समय उसकी वीडियो रिकॉडिंग भी की जाती है परन्तु इसको न्यायलय में स्वीकारिया नहीं माना जाता। नार्को टेस्ट जांच एजेंसी को अपराध से जुड़े हुए साक्षो को ढूढ़ने में मदत करता है ।
क्या कोर्ट में नार्को टेस्ट स्वीकार्य है? Is Narco Test Legal in India
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने नार्को टेस्ट की वैधता पर प्रश्न उठाने वाली याचिका के जवाब में कहा था की ये अवैध और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन में है। साथ ही साथ न्यायालय ने ये भी कहा की नार्को टेस्ट के दौरान दिए गए बयान न्यायालय में प्राथमिक साक्ष्य के तौर पर स्वीकार्य नहीं है।
नार्को टेस्ट की अनुमति न्यायालय तभी देता है जब न्यायालय को लगे की केस की प्रक्रिया को पूरा करने के लिए इसकी आवश्कता अधिक है यह गंभीर से गंभीर परिस्थितियों में ही दिया जा सकता है।
नार्को टेस्ट के लिए सुप्रीम कोर्ट ने समय समय पर गाइडलाइन भी जारी की है।
Selvi vs State of Karnataka Case, SC (2010)
इस केस में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा की टेस्ट के दौरान दिए गए बयान को केस की जांच करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है लेकिन उनको संस्वीकृति (Confession) और साक्ष्य (Evidence) के रूप में नहीं माना जा सकता है|
इसके साथ ही साथ कोर्ट ने भारतीय सविधान के अनुच्छेद 20(3) का हवाला देते हुए कहा की किसी भी व्यक्ति को, जिस पर कोई अपराध लगाया गया है, स्वयं अपने विरुद्ध साक्ष्य देने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा यह उसके मौलिक अधिकार का उलंगन माना जायगा।
D.K. Basu vs. State of West Bengal Case, (1997)
इस केस में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा की नार्को, पॉलीग्राफ टेस्ट एक प्रकार से क्रूर और मानव के प्रति अभद्र व्यवहार है जो सविधान के अनुच्छेद 21 (प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण) का उलंगन माना जाता है और इसको भारतीय साक्ष्य अधिनियम 1871 के अनुसार साक्ष्य नहीं माना जा सकता।
FAQs – People also ask
नार्को टेस्ट की सक्सेस रेट कितनी है?
नार्को टेस्ट से मिले बयानों से अगर कोई सबूत को जुटाने में सहायता मिले तो ये टेस्ट सफल माना जाता है परन्तु इस टेस्ट की सफलता का अंतिम फैसला न्यायालय पर निर्भर करता है। ये पूर्ण रूप से सही नहीं माना जा सकता है।
नार्को टेस्ट में कितना खर्च आता है? Narco Test Price
नार्को टेस्ट करवाने में लगभग 55 से 60 हजार रुपए लग सकते है। टेस्ट करने के लिए फोरेंसिक लैब समय देती है उसी समय अवधि पर टेस्ट किया जाता है कभी कभी यह समय 1 महीने तक का भी हो सकता है।
नार्को टेस्ट के साइड इफेक्ट्स क्या हैं? Is Narco Test Dangerous
नार्को टेस्ट करने से व्यक्ति पर कई प्रकार के प्रभाव पड़ते है वह मानसिक रूप से अपने आपको कमजोर महसूस करने लगता है उसकी यादाश कमजोर हो जाती है अगर नार्को दवाइयों का जरुरत से ज्यादा इस्तेमाल हो जाये तो व्यक्ति की मृत्यु तक भी हो सकती है या वह कोमा की स्थिति में भी जा सकता है इसी कारण से नार्को टेस्ट गंभीर अपराधों में अधिक आवश्यक्ता पड़ने पर ही न्यायालय की अनुमति के बाद ही किया जा सकता है।
नार्को टेस्ट कब किया जाता है?
नार्को टेस्ट का उपयोग आरोपी व्यक्ति से जानकारी निकलवाने के लिए किया जाता है या तो वह व्यक्ति जानबुझ कर नहीं प्रदान करवाता है दूसरे शब्दों में ये कहा जा सकता है की जो आरोपी केस से जुड़े हुए सत्य को बताने में मनमानी करता है तो उसके मन से सत्य को नार्को टेस्ट के द्वारा ही निकलवाया जाता है।