आज कल के बढ़ते युग में जैसे जैसे व्यापार में बढ़ोतरी हो रही है उसी प्रकार पैसो से सम्बंधित मामलो में भी बढ़ोतरी हो रही है उसी का जीता जागता उदहारण चेक बाउंस केस (Cheque Bounce Case me Bachav Ke Upay) को देखा जा सकता है।
ज्यादातर मामलो में यहाँ देखा जा सकता है कि लोग बिना कुछ सोचे समझे दूसरे लोगो को क़ानूनी झाल में फ़साने का काम करते है।
उसकी के कारण देश में झूठे चेक बाउंस केस (False Cheque Bounce Case) के मामलो में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी हुई है।
अगर आपके ऊपर भी किसी व्यक्ति ने झूठा चेक बाउंस केस (False Cheque Bounce Case) किया है तो आपको बिलकुल भी घबराने कि जरुरत नहीं है।
आज हम आपको कुछ ऐसी बातो के बारे में बताएगे जिनका इस्तेमाल करके आप अपने चेक बाउंस केस से बच (Cheque Bounce Case me Bachav Ke Upay) सकते है।
तो चलिए अब जानते है कि चेक बाउंस केस में कैसे अपने आपको बचा सकते है।
चेक बाउंस में बचाव (Cheque Bounce Case me Bachav Ke Upay)
चेक बाउंस नोटिस का जवाब दे – सबसे पहले अपने वकील से मिले क्योकि चेक बाउंस केस में जैसे ही चेक बाउंस हो जाता है तो शिकायतकर्ता आपको यानिकी आरोपी को एक लीगल नोटिस (जो हो सकता है कि वह अपने वकील से या फिर खुद से भी भेज सकता है) जैसे ही बैंक से वह चेक बाउंस कि सुचना प्राप्त होगी उसके 30 दिनों के अंदर आरोपी को लीगल नोटिस भेजता है।
जो परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act) कि धारा 138 (NI) और अगर इसी मामले में कोई कम्पनी है तो उसको परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act) कि धारा 141 और 142 के तहत लीगल नोटिस भेजा जाता है।
इसको आपको बिलकुल भी हलके में नहीं लेना है क्योकि अगर आप उस लीगल नोटिस प्राप्त होने के 15 दिन के अंदर शिकायतकर्ता को पैसे नहीं लौटते तो वह आपके खिलाफ न्यायालय में चेक बाउंस का केस कर सकता है।
इस लीगल नोटिस का जवाब आपको अपने वकील से अच्छे तरीके से तैयार करवाकर देना है।
इसके बाद जब शिकायतकर्ता आपके खिलाफ न्यायालय में चेक बाउंस केस कर देता है तो आपको न्यायालय से समन जारी किये जायगे और उसमे एक तारीख लिखी होगी उस तारीख पर आपको न्यायालय में जाना है और अपनी जमानत (Bail) करवानी है।
इसके बाद आरोपी के वकील को परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act) कि धारा 145 (2) के तहत न्यायालय में शिकायतकर्ता और उसके गवाह से जिरह (Cross Examination) के लिया न्यायालय में एक Application लगनी पड़ती है।
इसके बाद दंड प्रक्रिया सहिता कि धारा 313 CrPC के तहत आरोपी के न्यायालय में बयानों को दर्ज किया जाता है इसी समय आरोपी अपनी बात न्यायालय के सामने रख सकते है और अपना बचाव कर सकता है।
आरोपी अपने बचाव में न्यायालय से यह कहा सकता है कि शिकायतकर्ता ने आरोपी का हस्ताक्षर किया हुआ चेक चोरी करके उसको बाउंस करवा दिया और फिर आरोपी के खिलाफ झूठा चेक बाउंस केस कर दिया |
लेकिन न्यायालय सबूतों को पहले देखती है तो आपको इसको साबित करने के लिए आरोपी को शिकायतकर्ता के चेक बाउंस केस करने से पहले कि तारीख कि चोरी हुए चेक कि FIR कि कॉपी न्यायालय को दिखानी होगी ताकि आरोपी का केस न्यायालय में मजबूत हो सके।
इसमें आपको ये भी ध्यान रखना जरुरी है कि जब आपका चेक चोरी हो जाता है तो आपको बिना देर करे इसकी सूचना पुलिस और अपने बैंक को देनी चाहिए ताकि आप भविष्य में होने वाली परेशानियों से बच सके।
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इसके आलावा आरोपी न्यायालय से शिकायतकर्ता के इनकम टेक्स रिपोर्ट (Income Tax Report) मांगवाने कि गुहार कर सकता है। इसमें आरोपी को यह देखना है कि शिकायतकर्ता ने जितनी रकम का चेक बाउंस कराकर आरोपी के खिलाफ केस दर्ज करवाया है उतनी रकम शिकायतकर्ता ने अपनी इनकम टेक्स रिपोर्ट में भी दिखाई है या नहीं।
अगर शिकायतकर्ता ने इनकम टेक्स रिपोर्ट में वो रकम नहीं दिखाई है तो यह आरोपी के किये एक अच्छा बचाव हो सकता है क्योकि न्यायालय ने बहुत सारे चेक बाउंस केस में यह बात कही है कि अगर आप किसी को उधर पैसा देते हो तो उसको अपनी इनकम टेक्स रिपोर्ट में जरूर दिखाना चाहिए।
आरोपी अपने बचाव में न्यायालय से चेक कि राशि के बारे में यह कहा सकता है कि यह राशि जो चेक में लिखी गयी है वह गलत है क्योकि शिकायतकर्ता कि कमाने कि क्षमता चेक में लिखी हुई रकम से काफी काम है।
अगर शिकायतकर्ता एक छोटा व्यापारी है और वह महीने का केवल दस से बारह हजार कमाता है और उसके द्वारा न्यायालय में प्रस्तुत किया गया चेक लाखो में है तो आप इस पर न्यायालय से कहा सकते है कि यह राशि गलत तरीके बढ़ाई गयी है जो कि सही नहीं है तो इसमें न्यायालय हो सकता है कि इसको एक झूठा चेक बाउंस केस समझकर केस को ख़ारिज कर सकता है।
इसके आलावा आरोपी यह जनता है कि शिकायतकर्ता ने पहले भी बहुत सारे लोगो पर इसी प्रकार के झूठे चेक बाउंस केस किये हुए है तो आरोपी न्यायालय से उन सभी फेक चेक बाउंस केसो (False Cheque Bounce Cases) कि कॉपी निकलवा सकता है और अपने केस में लगा सकता है जिससे आरोपी फेक चेक बाउंस केस से बच जाएगा।
इसके आलावा आरोपी न्यायालय से यह कहा सकता है कि मेरा चेक ग़ुम हो गया था और इसकी रिपोर्ट मेने पुलिस को भी कि थी और यह रिपोर्ट पुलिस कि जनरल डायरी (GD) में भी दर्ज है और इसके साथ ही आरोपी ने चेक कि स्टॉप पेमेंट भी करवाई थी चेक के बाउंस होने से पहले। तो इस स्थिति में आरोपी को न्यायालय से बचाव मिल जाएगा।
इसके आलावा आरोपी को यह देखना है कि जब ये चेक दिया गया था उस समय वह पर कोई अन्य व्यक्ति था या नहीं।
इसका फायदा आरोपी को तब मिल सकता है जब शिकायतकर्ता न्यायालय में किसी भी प्रकार के गवाह को या फिर किसी भी प्रकार कि अग्ग्रेमेन्ट या वीडियो या ऑडियो या रसीद न्यायालय में पेश करने में विफल रहता है तो आरोपी को इस मालमे में बचाव मिल सकता है।
अगर आरोपी ने शिकायतकर्ता को चेक किसी लोटरी या कोई सट्टे कि रकम को अदा करने के लिए दिया था और शिकायतकर्ता और आरोपी के बीच इसके लिए कोई अग्ग्रेमेन्ट भी हुआ था तो वह भारतीय संविदा अधिनियम, 1872 कि धारा 30 के अनुसार शून्य अग्रिममेंट माने जाते है और कोर्ट इनको नहीं मानती है।
अगर शिकायतकर्ता ने आरोपी के खिलाफ कोई चेक बाउंस केस पहले से ही कर रखा है और फिर अगर वह आरोपी का कोई दूसरा चेक बाउंस करवाकर आरोपी के खिलाफ केस करता है तो इसमें न्यायालय उस केस को रद कर देगी।
परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act) के अनुसार शिकायतकर्ता को बैंक से चेक बाउंस मेमो मिलने के बाद 45 दिनों का समय होता है|
जिसमे वह आरोपी को 30 दिनों के अंदर एक लीगल नोटिस भेजता है और उसमे यह बात लिखता है कि नोटिस मिलने के 15 दिनों में अगर आरोपी पैसे वापस नहीं करता है तो शिकायतकर्ता को यह अधिकार मिल जाता है कि वह न्यायालय में जाकर आरोपी के खिलाफ एक आपराधिक मामला जो परक्राम्य लिखत अधिनियम 1881 (Negotiable Instruments Act) कि धारा 138 में दर्ज करवा सकता है।
इसमें यह समय सीमा ध्यान रखने योग्य है अगर शिकायतकर्ता इनमे से किसी भी समय सीमा का उलंघन करता है तो मामला आरोपी के पक्ष में आ सकता है।
आरोपी न्यायालय से कहा सकता है कि शिकायतकर्ता ने जो चेक न्यायालय में दिया है वह चेक आरोपी ने पैसे देने के लिए नहीं दिया था बल्कि एक प्रकार से प्रतिभू (Surety) के तोर पर दिया था।
शिकायतकर्ता ने चेक का गलत तरीके से प्रयोग किया है लकिन ये बात ध्यान रखना जरुरी है कि अगर आप इस बात का बचाव चाहते है तो ये साबित करने का भार भी बचावपक्ष यानिकि आरोपी पर ही होगा।
आरोपी इसे साबित करने के लिए किसी भी प्रकार का अग्रिमेंट या कोई स्टाम्प पेपर का भी इस्तेंमाल कर सकता है जिसमे यह साफ़ शब्दो में लिखा हो कि चेक केवल प्रतिभू (Surety) के लिए दिया गया था न कि पेमेंट के लिए।
अगर शिकायतकर्ता अपनी शिकायत में यह बात नहीं लिखता है कि यह चेक आरोपी से किस जगह (Place) और किस समय (Time) और किस उद्देश्य के लिए लिया था तो यह आरोपी के लिए एक अच्छा बचाव साबित हो सकता हैं।
इसके आलावा आरोपी को लगता है कि शिकायतकर्ता ने चेक में किसी भी प्रकार गलत इरादे से उसकी राशि या फिर किसी अन्य महत्वपूर्ण अंको में परिवर्त्तन किया है तो आरोपी न्यायालय से इस चेक को किसी लेखन विशेषज्ञ (Writing Specialist) से इसकी जांच करवाने कि गुहार कर सकता है।
अगर इसमें यह बात साबित हो जाती है कि शिकायतकर्ता ने चेक में हेराफेरी कि है तो आरोपी को शिकायतकर्ता को किसी भी प्रकार कि रकम देने कि आवश्यकता नहीं है बल्कि इस स्थिति में शिकायतकर्ता ही फस जाएगा |
आरोपी उस पर भारतीय दंड सहित कि धारा 420 , 467 , 468 , 471 ,और 500 ,के तहत केस कर सकता है।
अगर आरोपी न्यायालय में यह साबित कर देता है कि शिकायतकर्ता ने चेक आरोपी से किसी भी तरह के छल (Fraud ) से हासिल किया है तो यह भी आरोपी के पक्ष में एक अच्छा बचाव साबित हो सकता है।
लेकिन फ्रॉड अलग अलग केस के हिसाब से अलग अलग हो सकता है| यह केस के तथ्यों पर निर्भर करता है कि आपके केस में कोनसा धोखा हुआ है।
हमने इस पोस्ट के माद्यम से ज्यादातर चेक बाउंस केस में बचाव (Cheque Bounce Case me Bachav Ke Upay) को शामिल करने की कोशिश की है ताकि आप इनका प्रयोग अपने केस में कर सके।
यह पोस्ट दोनों यानिकि शिकायतकर्ता और आरोपी के लिए जरुरी है क्योकि शिकायतकर्ता अगर इन बचावो के बारे में पहले से ही जानता है तो वह अपना केस और अच्छी तरीके से मजबूत कर सकता है और आरोपी के लिए तो है ही जरुरी।
इसमें आपको शिकायतकर्ता और आरोपी का मतलब भी समझना जरुरी है। शिकायतकर्ता (Complainant) वह व्यक्ति होता है जिसका चेक बाउंस हुआ है मतलब कि पीड़ित व्यक्ति जिसको कि आरोपी पैसे देता है।
और आरोपी (Accused) जिसने शिकायतकर्ता को चेक दिया है वह व्यक्ति आरोपी होता है।
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138ka ek case pahle. Dusara case 15din baad apeel Kiya. kaya apeel yogya hai ….? Judge ment koi ho
Mujhse ek admi ne loan karane ke liye I’d evm Khali chek singh karke liye the ab vo usne chek khud bharke apne account me lagakar bounce karba Diya he
sir kabhi bi blank cheque nahi dena chahiye sath me agar cheque dena bi hai to usko cross cancel mark karna chahiye ab apko is matter me yahi proff karna hai ki cheque apne loan prosses karvane ke liye diya tha. agar apko or help chahiye to ap hmse fb pr chat kar sakte hai.
Mere uper 138 kiya hai Shriram transportwalone upay batao kaise bache gadi bhi uthaliya aur case bhi kiya 8lakh dala amount.baki 4lac hitha
pahle case ki full details hme send kijiye tabi hm apki help kar sakte hai.
Sir ji apka contract no kya h mujhe apse baat krni h check bounce k case m
sir ap hme fb pr msg kijiye @theblindlawofficial taki hm apse samparak kar sake.
2011 me cheque ki validity kitni hoti thi 6 mahine ya 180 din please bataye with avidance